Dec 31, 2009

The last post of the year

This is formally the last post of the year by me on this blog. The year 2009 ends today and my twitter status reads, "another year of failed resolutions, unkept promises about to end, and not as one has ended another is ready to follow. Happy New Year." Someone asked me that why so negative towards the end of the year. All I have to say is that to me it is not a negative attitude to remember one's failures or shortcomings. What I have achieved is something that is in the past but what I failed to achieve has implications for the future. It means I have unlearnt lessons, opportunities to improve and things that are still to be done. Isn't that the whole message the new year is supposed to bring?
Maybe I am wrong. Your comments are welcome and yes once again, Happy New Year.

Dec 2, 2009

न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ
छू न पाना चाँद को
उसकी खूबसूरती को बढ़ा जाता है,
कह न पाना उस बात को
उसकी एहमियत को जता जाता है,
और न जाने क्यूँ
मिलना तुमसे दो पल का,
दूरियों का एहसास दिला जाता है

Sep 19, 2009

आज़ादी


तुमने हमेशा लम्हों को यादों की ज़ंजीरों से बांधना चाहा
हर सपने को हकीक़त की सीमाओं में क़ैद किया
खूबसूरती को तस्वीरों में छुपाने की कोशिशें की
और अपने इर्द-गिर्द अपनी ही चाहत का किला बनाया,
और आज तुम आज़ादी की बात करते हो?
ये बिन जाने,
कि जिन बन्धनों में बाँध रहे हो तुम
ख़ुद उनमें उलझते से जा रहे हो ...

Sep 3, 2009

एक सवाल


ऐसा क्यों होता है कभी कभी कि

बातें शब्दों के जाल में उलझकर रह जाती हैं,

इरादे कोशिश के दायरे से निकल कर हकीकत को नही छू पाते हैं

सुबहें पलकों के परदों को पार कर आंखों से नही मिलती,

और आवाजें इन कानों को चीर कर दिल तक नही पहुँचती

क्यों हम खुली आंखों से सच को झुठलाते हैं और,

अपनी हालत का जिम्मेदार हालात को ठहराते हैं?



Jul 9, 2009

उड़ान

आज बंद करके आँखें,
जो आकाश को देखा
तो कितने ही आज़ाद पंछी दिखे
उड़ते हुए एक ऐसी उड़ान,
जिसका न कोई अंत था और न कोई शुरुआत,
न कोई क़दमों के निशाँ थे आसमान पर,
जिनपर उनको चलना पड़ता
न थी उम्मीद की बेडियाँ,
जो बांधती हो उनको लोगों के सपनों से

बस आज़ादी थी और,
उनकी अपनी उड़ान
जो कहीं से मुझे कुछ इशारा सा करती थी

पर जब आँख खुली,
तो शाम ढल चुकी थी
और आसमान खाली था
मैं वहीँ ज़मीन पर,
अपने परों से अनजान
भीड़ में खोता जा रहा था ...

Jun 25, 2009

मुड़ कर न देखना


वक़्त के इशारे पे,

नदी के इस किनारे से,

रुख़सत तो पड़ रहा है तुम्हे करना

बस इतनी सी गुज़ारिश है मेरे दोस्त

इस तरफ़ मुड़ कर न देखना


जाते हुए क़दमों की आहट को मैं सुन लूँगा

चुप चाप शायद रो भी लूँ,

पर कुछ न कहूँगा

पर अपनी आंखों में आए तूफ़ान से,

मेरे सब्र के बाँध की ताक़त को न परखना

बस इसीलिए गुज़ारिश है मेरे दोस्त

अब कभी मुड़ कर न देखना

Jun 17, 2009

Love (continued from earlier post)

अधखुली आंखों में एक मोती सजा कर रखा है,
यादों के धागे में एक लम्हा पिरो कर रखा है,
अब इस से ज़्यादा हासिल क्या होगा ज़िन्दगी में ,
चाहा था जिसे उसको इस दिल में छुपा कर रखा है .

Jun 3, 2009

आखिरी बात

सोचता हूँ अब इस कहानी का अंत कर दूँ
पर डरता हूँ,
अपनी कलम से आखिरी अल्फाज़ कैसे लिखूं ?

सोचता हूँ अब हर भरम को ख़तम कर दूँ
पर डरता हूँ ,
इन पन्नों पे उसका नाम कैसे लिखूं ?

May 31, 2009

The Great Recession


Before diving straight into what I have to say, I would like to make it very clear that this is no article on the economics of the recession the world is facing these days. It's just my personal thought on the impact the recession is having on the people around me.
'Recession-' meaning 'going back' has become a buzzword these days and particularly in places like my campus where my batch is soon to face the placements. Everyone seems to be concerned about what will be their future in these turbulent times when the corporate world is bent on cutting down their existing staff and looking for lesser new recruits. People around are ready to compromise and let go of their dreams for anything that would provide some stability in these troubled times.
But aren't our situations a reflection of what we are? If we continue to be pessimistic and let our dreams recede along with the economy then surely it will require more than a Herculean effort to beat this recession.
All I want to say to anyone reading this post is that please don't let your dreams and aspirations recede. They may not be the only thing essential to emerge out of this dark cave but certainly they will act as a beacon to lead our ways. I am no expert on either economics or life; all I have to say is the way people react to circumstances is sometimes more important than the circumstances that caused the reaction.

May 22, 2009

ख्वाहिश


आंखों पे पट्टी बांधे ,


ख़ुद से अनजान विचारों की ऊँगली थामे,


तेरे इशारों पर भागा जा रहा था, बेवजह



अपनी ही सूरत को बिन पहचाने


ज़माने की आंखों को सच माने,


मन के आईने से बेपरवाह था किस तरह


अंधी
दौड़ दौड़ रही ए तेज़-गाम ज़िन्दगी,

कुछ पल के लिए तेरी रफ़्तार खोना चाहता हूँ मैं,

ख्वाबों में नही,

यादों में नही,

आज बस इसी पल में जीना चाहता हूँ मैं

May 16, 2009

सपने


नींद में आने वाले अनजाने ख़याल

या मेरे अंतर्मन के छुपे हुए सवाल

आंखों के परदे पर चलती तसवीरें

या खालीपन के कैनवास पर धुंधली उम्मीद की लकीरें ??????



May 11, 2009

तुम आए

अकेलेपन के धागों से
अपने इर्द-गिर्द
जाल बुनता रहा, उधाडता रहा
खालीपन के मानक से
संसार के
हर सागर की गहरायी भांपता रहा

उलझता जा रहा था ख़ुद के ही जाल में
खोता जा रहा था अपने ही सवाल में
कि तुम आए,

और धीरे धीरे आसमान से बादल हटने लगे
और चमका एक सितारा,
जिसकी रौशनी से मैंने ख़ुद को छुपा रखा था ,
मिली एक नई दृष्टि
जो पहले सी सीमित न थी,

पूरा तो नही हूँ मैं आज भी, मगर
तुम्हारे आने से
अधूरेपन का एहसास जाता रहा


May 8, 2009

रात

दिन की गलियों में तेरा ठिकाना ढूंढता हूँ
रात तुझसे मिलने का कोई बहाना ढूंढता हूँ

दुनिया की इस भीड़ में
एक मीत पुराना ढूंढता हूँ
ए रात तुझसे .......

जब यादों से बेचैन दिल को राहत आने लगे
और सपनो से बोझल पलकों पर नींद छाने लगे
तेरे आने के यही निशान ढूँढता हूँ
ए रात तुझसे मिलने का कोई बहाना ढूंढता हूँ

Apr 6, 2009

बोलती आँखें

कुछ न कह कर कह जाती हैं

कितना सब कुछ ये आँखें

मदहोशी के आलम को

ख्वाबों से सजाती ये आँखें

मन के हर अंधेरे को

राह दिखाती ये आँखें

हर उजले सवेरे को

शर्मसार करती ये आँखें

क्या क्या बोल जाती हैं एक इशारे से

टपका जो एक moti इनके किनारे से

दर्द की भी तड़प उठती हैं साँसे

बयां कर जाती हैं कभी ऐसे हालत ये आँखें

चाँद भी फीका पड़ गया है आज

जो चमक उठे हैं इनमें हजारों राज़

क्या इनमें एक दुनिया देख रहा हूँ मैं?

या जागते हुए सपने बुन रहा हूँ मैं?

सच है की दीवाना हो चला हूँ मैं

पर हर सच को झुट्लाती ये आँखें

कुछ न कह कर.........




Mar 31, 2009

Love

These are a collection of my very short romantic poems:



आ जाते हो ख्वाबों में तुम
बस याद करने की देर है
दरमियाँ हमारे ये फ़ासले तो
बस नज़रों का फेर हैं........



जब दुहरा दुहरा कर हर बात फीकी लगने लगती है
जो कहने को तो मुश्किल, पर समझ में सीधी लगती हैं
तब उन बातों का ध्यान आता है, और कहीं से
फिर उसका चेहरा, इस दिल पर छा जाता है ......




इन आंखों के नज़ारे अब मेरे बस में नही रहे
होंठों के लफ्ज़ सारे अब मेरे बस में नही रहे
हर आती जाती साँस पर बस तेरा नाम लेता हूँ
और लोग जिसे कहते हैं ख्वाब,
मैं तेरा दीदार कहता हूँ.....

Mar 28, 2009

क्या मैं चाहता हूँ तुझे??



क्या मैं चाहता हूँ तुझे ए मंजिल?
क्या इस दिल को तेरी ज़रूरत है?
ये तेरे करीब आने की खुशी है
या किसी अपने से बिछड़ने की आहट है?
मैं शायद नही जानता...

तुझे देखा है पर तेरी सूरत यादों से खो सी गई है
तुझे पाने की हसरत मन से फना सी हो गई है
तेरी तरफ़ जिन राहों पर बढ़ता रहा आजतक
वो राहें ही क्यों मेरी ज़िन्दगी अब हो गई हैं?
मैं शायद नही जानता...

राहों को पाकर ऐसा लगा मंजिल बेमानी है,
मंजिल तो है एक प्यास, पर राहें पानी हैं,
अब तो है इस दिल की यही आरजू,
बनकर राही ख्वाबों का कारवां लिए चलूँ
है मेरा खुदा आख़िर क्या चाहता ?
मैं शायद नही जानता...

About this blog

Hi, this is Abhijit and this is supposed to be the very first post on my blog. This blog was created way back(I don't even remmeber when), but now I think I should really write something here, as I have been reminded by someone that a blog exists under my name. It will contain some of my own ideas, some of my favourite works and a few nonsensensical articles as well.
Anyone who finds me annoying can please send his compliments via email.