अकेलेपन के धागों से
अपने इर्द-गिर्द
जाल बुनता रहा, उधाडता रहा
खालीपन के मानक से
संसार के
हर सागर की गहरायी भांपता रहा
उलझता जा रहा था ख़ुद के ही जाल में
खोता जा रहा था अपने ही सवाल में
कि तुम आए,
और धीरे धीरे आसमान से बादल हटने लगे
और चमका एक सितारा,
जिसकी रौशनी से मैंने ख़ुद को छुपा रखा था ,
मिली एक नई दृष्टि
जो पहले सी सीमित न थी,
पूरा तो नही हूँ मैं आज भी, मगर
तुम्हारे आने से
अधूरेपन का एहसास जाता रहा
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