May 22, 2009

ख्वाहिश


आंखों पे पट्टी बांधे ,


ख़ुद से अनजान विचारों की ऊँगली थामे,


तेरे इशारों पर भागा जा रहा था, बेवजह



अपनी ही सूरत को बिन पहचाने


ज़माने की आंखों को सच माने,


मन के आईने से बेपरवाह था किस तरह


अंधी
दौड़ दौड़ रही ए तेज़-गाम ज़िन्दगी,

कुछ पल के लिए तेरी रफ़्तार खोना चाहता हूँ मैं,

ख्वाबों में नही,

यादों में नही,

आज बस इसी पल में जीना चाहता हूँ मैं

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