रातों के घंटों में बंटने से एक ज़माना पहले
जब चाँद का तकिया लगाकर
आसमान की काली चादर पर
तारों का बिस्तर सजता था,
तब दादी,
कहानियों के कुछ फूल चुनकर
मेरे पास रख जाती थीं
कुछ राजा-रानी और
राक्षस की जान खुद में समेटे तोते
बहुत देर तक
कमरे की हवाओं में तैरते रहते थे
हर रोज एक नयी सी लगने वाली कहानी
आँखों के परदे पर गुज़र जाती थी
और अपनी दुनिया में मुझे कहीं गुम कर जाती थी
इस बात के एहसास में शायद बरसों लग गए
की हर कहानी का अंत हमेशा मुझे मालूम होता था
राजा रानी से अमूमन मिल ही जाता था
फिर भी जाने क्यूँ
रोज़ इन्हें सुनने में एक नया मज़ा आता था...
शायद तब कहानियों को जीना
अंत तक पहुँचने से ज़्यादा एहमियत रखता था
और शायद इसीलिए जिंदगी के कामों में कहीं
अब वो मज़ा नहीं आता...
(Image source: http://images5.fanpop.com/image/polls/855000/855238_1318607051730_full.jpg)
अब कहाँ मिलती हैं बचपन की कहानियां सुनने को ...
ReplyDeleteबचपन की याद हमें भी बहुत आती हैं ...
बहुत बढ़िया
विज्ञान की धारा से सम्बन्ध रखता हूँ इसलिए मेरा मानना है कि कुछ भी कभी भी समाप्त नहीं होता. भले ही आज ये कहानियाँ सुनने को नहीं मिलती पर किसी रूप में आज भी हमारे बीच मौजूद हैं.
Deleteकोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
dhanyavaad sanjayji! thoda bahut likhne ki koshish karta hun. jab koi itni tareef kar deta hai to khud se apeshaayen badh jaati hain :)
Deleteशायद तब कहानियों को जीना
ReplyDeleteअंत तक पहुँचने से ज़्यादा एहमियत रखता था
...बहुत सुन्दर अहसास....बचपन की यादों को ताज़ा करती बहुत प्रभावी रचना...
shukriya sir! aapki kavitaon se kaafi kuch seekhne ko milta hai.
Deletevo kahaniyan va sunaane kaa andaaj bada dilchasp jise baar baar sunneki eccha kre.
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