क्या मैं चाहता हूँ तुझे ए मंजिल?
क्या इस दिल को तेरी ज़रूरत है?
ये तेरे करीब आने की खुशी है
या किसी अपने से बिछड़ने की आहट है?
मैं शायद नही जानता...
तुझे देखा है पर तेरी सूरत यादों से खो सी गई हैतुझे पाने की हसरत मन से फना सी हो गई हैतेरी तरफ़ जिन राहों पर बढ़ता रहा आजतकवो राहें ही क्यों मेरी ज़िन्दगी अब हो गई हैं?मैं शायद नही जानता...राहों को पाकर ऐसा लगा मंजिल बेमानी है,मंजिल तो है एक प्यास, पर राहें पानी हैं,अब तो है इस दिल की यही आरजू,बनकर राही ख्वाबों का कारवां लिए चलूँहै मेरा खुदा आख़िर क्या चाहता ?मैं शायद नही जानता...
good start dude!
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