Nov 20, 2010

एक और ख्वाब

आज सुबह जब एक ख्वाब से जगा,
और दिन की तरफ धीमे पाँव बढा
तो अचानक अनजाने में ही,
एक और ख्वाब के जाल में उलझ सा गया
और पूरे दिन इसी जाल में जूझता रह गया,
कभी गर्म सूरज को हथेली में क़ैद करना चाहा तो
कभी मोम के पंख लगाकर उड़ने की कोशिश की
और थक कर रात को एक और ख्वाब में खो गया

किसी एक पल में जब आज हकीकत में बैठा
तो पाया कि ज़िन्दगी बस दो तरह के ख्वाबों के बीच,
सिमट कर रह गयी है, और
आखें इतनी नींद में रहती है आजकल कि
इन्हें ख्वाबों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता !!

Sep 17, 2010

गीत की तलाश

अपने खाली से मन को भरने के लिए,
इस भारी से लम्हे का बोझ कुछ कम करने के लिए
मैं एक गीत की तलाश में कहाँ कहाँ न गया ...

कुछ अतीत की गलियाँ छानी,
जहाँ बस बीते यादों की धूल मिली
कुछ सपनो की बुनी कहानी,
जो किसी मरीचिका सी दूर रही
कभी प्रीत की डोर भी थामी
पर वो भी कुछ कमज़ोर रही
मंदिर देखे, किताबें ढूंढी,
पर निशाँ न था उसका कहीं

जब एक दिन थक हार कर बैठा
और अपने उसी खाली से मन को देखा
तो उसकी ही गहराइयों में कहीं
इसी लम्हे की गोद में बस वहीं
हर खालीपन को भरता हुआ
हर बोझ को कम करता हुआ
हर नज़र से अनदेखा हुआ
वो गीत हमेशा यहीं था
वो गीत हमेशा यहीं था ...

Jul 30, 2010

खामोशियाँ

लहरों की तल्ह्टों में कहीं दबी हुयी सी

तूफानों के शोर में कहीं घुली हुयी सी

दुनिया की भाग दौड़ में कहीं मिली हुयी सी

खामोशियाँ गूंजने लगी हैं आजकल कुछ इस तरह

की अपनी आवाजें सुनना मुश्किल सा होने लगा है,


अँधेरे कोनों से पुकारती हुयी सी

गर्म सी साँसों को कंपाती हुयी सी

ठहरे ख्यालों को हिलाती हुयी सी

खामोशियाँ मचलने लगी हैं आजकल कुछ इस तरह

की अब भी कुछ कहना नामुमकिन सा हो गया है...

Jun 27, 2010

दूरी


कोई साथ न होकर भी मेरे साथ-साथ चलता है,

जैसे कोई सितारा मुसाफिर के संग सारी रात चलता है

ढूंढ नहीं पाता मैं उसे दिन के उजाले में कहीं

पर हर रात वो यहीं मेरे ख्वाबों में रहता है

दूरियों का यकीन करूँ भी मैं क्यूँकर,

जब बन कर वो मुस्कान सदा इन होंठों पर रहता है...

Jun 6, 2010

तुम कह दो

बाहों में भले ही वो,
कितने तूफ़ान समेटे हो
उम्मीद की कश्ती को,
चाहे कितनी ही बार बिखेरे हो
तुम कह दो तो ये सागर अपार नहीं लगता
तूफानों से लड़ना यूँ बेकार नहीं लगता

सपनो से भी मेरे वो,
कितनी ही दूरी पर बैठा हो
छू लेने की कोशिश पर,
"नादान" कह के हँस देता हो
पर तुम कह दो तो क्षितिज पहुँच के पार नहीं लगता
सपनो का पीछा करना भी बिन सार नहीं लगता

कुछ तो जादू- मंतर है तुम्हारे इस विश्वास में
कि इस से बढ़कर तो ये संसार नहीं लगता
हालातों का मुझपर कुछ अख्तियार नहीं लगता
बस तुम कह दो तो ...

Apr 28, 2010

काश

काश की कोई जगह ऐसी भी होती

जहाँ मैं बस मैं और तुम बस तुम होते,

बीच में अनकहे लफ़्ज़ों के फ़ासले,

बेचैन सी खामोशियाँ,

और फ़िज़ूल की बातें न होती



यादें आखों से पिघल कर

आहिस्ता आहिस्ता बह जाती

और सपनो के धुंध

उस पल की रौशनी में

खुद को खो देते


काश की कोई जगह ऐसी भी होती

जहाँ मैं बस मैं और तुम बस तुम होते

और बस उस पल में वक़्त और दूरियों के फ़ासले खोते...

Apr 14, 2010

जाने से पहले

बिछड़ने में ही " चाहत क्या है ",
ये समझाने की ताक़त है
कभी समझे नहीं हम प्यार क्या है
फिर भी बस यूँ ही
गुज़र जाने से पहले मुड़ के उनको
देख लेने की हसरत है ...

Mar 24, 2010

ख्वाब

तुम्हारी आवाज़ सुनकर लगता है ऐसे
लम्बे-अँधेरे सफ़र में दूर कहीं,
दिख गया हो कोई दीप जैसे

एक मुलाक़ात से महसूस होता है ऐसे
मेरे ही सपनो की गलियों में कहीं,
कोई मंजिल की राह दिखा गया हो जैसे

कभी कोई ख़याल तुम्हारा दिल को छू जाता है ऐसे
मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीन और आसमान जैसे

इन सबके बाद भी अक्सर बस इस सोच में रहता हूँ
"कहीं तुम खुद कोई ख्वाब तो नहीं ?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहता हूँ

Feb 21, 2010

इंतज़ार


इन आँखों को न जाने किसका इंतज़ार रहता है,

हकीकत चुभती है, और तुम्हारे ख्यालों में करार मिलता है


काटने को दौडाते हैं ये दर - ओ- दीवार और आँगन

घर छोड़ कर इस दिल को तुम्हारी राह से प्यार रहता है

इन आँखों को ...


बेमाने से लगते हैं ये कल, आज और कल

मिलने की घडी का जूनून सर पे कुछ ऐसे सवार रहता है

इन आँखों को ...


क्या कभी ख़त्म होगा ये इंतज़ार ?

क्या कभी जाऊंगा मैं इस सागर के पार ?

अब इस ज़िन्दगी का तुमसे बस ये सवाल रहता है...

इन आँखों को ...

Jan 8, 2010

मैं जानता हूँ, पर ...


मैं जानता हूँ की ये सफ़र हमारा साथ कहीं छुड़ा देगा,

पर दिल क्यूँ चाहता है की तुम दो कदम साथ चलो?

मैं जानता हूँ सुबह का सूरज मुझे नींद से जगा देगा,

पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इन आँखों में रात करो?

मैं जानता हूँ की प्यासा ही रह जाऊंगा मैं शायद,

पर दिल क्यूँ चाहता है तुम मेरी बरसात बनो?

मैं जानता हूँ अंत नहीं कोई इस सिलसिले का,

पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इसकी शुरुआत करो...