Apr 28, 2010

काश

काश की कोई जगह ऐसी भी होती

जहाँ मैं बस मैं और तुम बस तुम होते,

बीच में अनकहे लफ़्ज़ों के फ़ासले,

बेचैन सी खामोशियाँ,

और फ़िज़ूल की बातें न होती



यादें आखों से पिघल कर

आहिस्ता आहिस्ता बह जाती

और सपनो के धुंध

उस पल की रौशनी में

खुद को खो देते


काश की कोई जगह ऐसी भी होती

जहाँ मैं बस मैं और तुम बस तुम होते

और बस उस पल में वक़्त और दूरियों के फ़ासले खोते...

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