लहरों की तल्ह्टों में कहीं दबी हुयी सी
तूफानों के शोर में कहीं घुली हुयी सी
दुनिया की भाग दौड़ में कहीं मिली हुयी सी
खामोशियाँ गूंजने लगी हैं आजकल कुछ इस तरह
की अपनी आवाजें न सुनना मुश्किल सा होने लगा है,
अँधेरे कोनों से पुकारती हुयी सी
गर्म सी साँसों को कंपाती हुयी सी
ठहरे ख्यालों को हिलाती हुयी सी
खामोशियाँ मचलने लगी हैं आजकल कुछ इस तरह
की अब भी कुछ न कहना नामुमकिन सा हो गया है...
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!
ReplyDeletedhanyavaad sir
ReplyDeletewotever is der is good... but .... i dnt knw , i may b wrong... but i have a feeling its incomplete.. i think it has more to it..
ReplyDeleteThere's a lot that is incomplete, but sometimes only time can complete certain expressions...
ReplyDeletesubhan-allaahh !!
ReplyDeletethnx bhaiya!
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