मैं जानता हूँ की ये सफ़र हमारा साथ कहीं छुड़ा देगा,
पर दिल क्यूँ चाहता है की तुम दो कदम साथ चलो?
मैं जानता हूँ सुबह का सूरज मुझे नींद से जगा देगा,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इन आँखों में रात करो?
मैं जानता हूँ की प्यासा ही रह जाऊंगा मैं शायद,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम मेरी बरसात बनो?
मैं जानता हूँ अंत नहीं कोई इस सिलसिले का,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इसकी शुरुआत करो...
awesome yaar...
ReplyDeletei hv just gone through ur other poems ,all r excellent.........a glimp of good poet :)
keep writing.......
thnx bhai!!
ReplyDeleteu r a good poet i mus say....i liked ur creations
ReplyDeletewith every post, your writing is improving Abhijit, keep it up .. thanks for sharing :)
ReplyDeletebas bhaiya aap jaise bade bhaiyon se hi seekh raha hun :)
ReplyDeletebeautiful lines........thoughts knitted wonderfully
ReplyDeletekeep the work on..
i'll wait for some more of ths kind :)