समय के दो सुनहरे किनारों को जोड़ने वाले,
आज के नाज़ुक से पुल पर
धीमी रफ़्तार से चलता हुआ,
ज़माने की हवाओं से कभी
लडखडाता, कभी संभलता हुआ
कन्धों पर ख्यालों से भरे बस्ते का वज़न उठता,
घुटनों पर लगी चोटों को समझकर कदम बढाता
एक बच्चा दिखता है मुझे
दुनिया में अपनी राह बनाता,
इस छोटी सी उम्र में ही माथे पर
तजुर्बे की लकीरें नज़र पड़ती हैं,
कहीं कहीं अपनों की दी हुयी चोटों से
चेहरे पर शिकन भी दिखती है
पर हर अफ़सोस भूलकर मुस्कुरा देता है वो
बस एक बार जो कोई उसे अपना भारत कहकर पुकार दे .
आज के नाज़ुक से पुल पर
धीमी रफ़्तार से चलता हुआ,
ज़माने की हवाओं से कभी
लडखडाता, कभी संभलता हुआ
कन्धों पर ख्यालों से भरे बस्ते का वज़न उठता,
घुटनों पर लगी चोटों को समझकर कदम बढाता
एक बच्चा दिखता है मुझे
दुनिया में अपनी राह बनाता,
इस छोटी सी उम्र में ही माथे पर
तजुर्बे की लकीरें नज़र पड़ती हैं,
कहीं कहीं अपनों की दी हुयी चोटों से
चेहरे पर शिकन भी दिखती है
पर हर अफ़सोस भूलकर मुस्कुरा देता है वो
बस एक बार जो कोई उसे अपना भारत कहकर पुकार दे .
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