Based on the memory of the setting sun across the Mandvi river in Goa.
इस किनारे पर बैठे हुए,
हर गुज़रती हुयी कश्ती के साथ
नज़रों से मैं दूसरे किनारे को छू आता था
वो दूसरा किनारा जहाँ की दलदली ज़मीन में
सूरज फंसता और डूबता जा रहा था
उसने आवाज़ तो लगायी होगी मदद की,
पर जलने के डर से किसी ने हाथ न बढ़ाया होगा
या फिर अपनी ही आग से डर कर
उसने ही किसी को नहीं बुलाया होगा...
कुछ भी हो,
वो धीरे धीरे डूबता गया और नदी बुझती गयी
और हर रोज़ की तरह
शाम अपना तमाशा पूरा कर
रात के परदे के पीछे जा बैठी.
इस किनारे पर बैठे हुए,
हर गुज़रती हुयी कश्ती के साथ
नज़रों से मैं दूसरे किनारे को छू आता था
वो दूसरा किनारा जहाँ की दलदली ज़मीन में
सूरज फंसता और डूबता जा रहा था
उसने आवाज़ तो लगायी होगी मदद की,
पर जलने के डर से किसी ने हाथ न बढ़ाया होगा
या फिर अपनी ही आग से डर कर
उसने ही किसी को नहीं बुलाया होगा...
कुछ भी हो,
वो धीरे धीरे डूबता गया और नदी बुझती गयी
और हर रोज़ की तरह
शाम अपना तमाशा पूरा कर
रात के परदे के पीछे जा बैठी.
No comments:
Post a Comment