Dec 3, 2011

तुम कौन हो ?

बाहें फैलाए मिलने वाले सूरज के जैसे,
मेरे दिन रोशन कर जाया करते थे
अब ढलती शाम के ओझल होते दिन के जैसे
थोडा सा अँधेरा इस कमरे में भर जाते हो

दौड से हांफती इस जिंदगी में साँसों के जैसे
मेरे सीने में भर जाया करते थे
अब टूटते जिस्म की आखिरी श्वासों के जैसे
थोडा सा मुझे अकेला कर जाते हो

महफ़िल में गूंजने वाले बोलों के जैसे
मेरे होंठों पर सज जाया करते थे
अब किसी भूले हुए गीत के लफ़्ज़ों के जैसे
थोडा सा यादों से खोते जाते हो

अब मैं क्या कहूँ तुमसे की तुम कौन हो
कल तुम मेरे गीत थे
अब तुम मेरे मौन हो ..

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