Almost two amazing years at XL are about to end. Saw the Learning Center in the evening today and was reminded of a pic of the same in the admissions brochure. This poem is dedicated to the awesome place called XLRI.
मैं तुम्हे कभी बस तस्वीरों से जानता था
देखता था तुमको और तुम्हारे रंगों पर आश्चर्य करता था
कि क्या हकीकत तस्वीरों के सपनों जैसी हो सकती है?
फिर एक दिन तुम हकीकत बन गए
और तुमसे मिलकर जाना कि तस्वीरें कितनी अधूरी हैं
उजाले और अंधेरों के कितने रंग हैं
जो इनमें समा ही नहीं सकते
और अब मुझे खुद से मिलाकर
थोड़ा सा जिंदगी का एहसास कराकर तुम
फिर उन्ही तस्वीरों में गुम होने वाले हो
तस्वीरों से तस्वीरों तक का सफर भी कितना खूबसूरत और अजीब होता है...
मैं तुम्हे कभी बस तस्वीरों से जानता था
देखता था तुमको और तुम्हारे रंगों पर आश्चर्य करता था
कि क्या हकीकत तस्वीरों के सपनों जैसी हो सकती है?
फिर एक दिन तुम हकीकत बन गए
और तुमसे मिलकर जाना कि तस्वीरें कितनी अधूरी हैं
उजाले और अंधेरों के कितने रंग हैं
जो इनमें समा ही नहीं सकते
और अब मुझे खुद से मिलाकर
थोड़ा सा जिंदगी का एहसास कराकर तुम
फिर उन्ही तस्वीरों में गुम होने वाले हो
तस्वीरों से तस्वीरों तक का सफर भी कितना खूबसूरत और अजीब होता है...
Read it myself - read it to my roomy.... And now feeling nostalgic, missing school-college-friends.... Thanks Abhijit...!!! :)
ReplyDeletenice work, cool
ReplyDeleteThanks jayanto and ankit for the appreciation.
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