Mar 28, 2009

क्या मैं चाहता हूँ तुझे??



क्या मैं चाहता हूँ तुझे ए मंजिल?
क्या इस दिल को तेरी ज़रूरत है?
ये तेरे करीब आने की खुशी है
या किसी अपने से बिछड़ने की आहट है?
मैं शायद नही जानता...

तुझे देखा है पर तेरी सूरत यादों से खो सी गई है
तुझे पाने की हसरत मन से फना सी हो गई है
तेरी तरफ़ जिन राहों पर बढ़ता रहा आजतक
वो राहें ही क्यों मेरी ज़िन्दगी अब हो गई हैं?
मैं शायद नही जानता...

राहों को पाकर ऐसा लगा मंजिल बेमानी है,
मंजिल तो है एक प्यास, पर राहें पानी हैं,
अब तो है इस दिल की यही आरजू,
बनकर राही ख्वाबों का कारवां लिए चलूँ
है मेरा खुदा आख़िर क्या चाहता ?
मैं शायद नही जानता...

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