Feb 9, 2013

शायरी

एक ठहरे हुए पल में रुक नहीं पाती है जो,
और बेचैन सी ढूंढती रहती है मायने
कभी पुरानी डायरी के पन्नों में,
और कभी कैलेंडर कि अगली तारीखों में
ये शायरी भी जिंदगी जैसा ही रोग है,
जो कभी मुकम्मल तो नहीं होती
पर पूरी ज़रूर होती रहती है...

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