Oct 2, 2011

बस कुछ यूँ ही

चाँद बनने की तमन्ना भी रखते हैं
और धब्बों से परहेज़ भी करते हैं
आसमान छूने की ख्वाहिश भी रखते हैं
और आँखों में सूरज का खौफ़ भी करते हैं
कुछ अजीब ही हैं तेरे शहर के लोग, ए यार
शोर को इज़हार समझते हैं और,
ख़ामोशी नज़रअंदाज़ करते हैं...

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