Nov 20, 2010

एक और ख्वाब

आज सुबह जब एक ख्वाब से जगा,
और दिन की तरफ धीमे पाँव बढा
तो अचानक अनजाने में ही,
एक और ख्वाब के जाल में उलझ सा गया
और पूरे दिन इसी जाल में जूझता रह गया,
कभी गर्म सूरज को हथेली में क़ैद करना चाहा तो
कभी मोम के पंख लगाकर उड़ने की कोशिश की
और थक कर रात को एक और ख्वाब में खो गया

किसी एक पल में जब आज हकीकत में बैठा
तो पाया कि ज़िन्दगी बस दो तरह के ख्वाबों के बीच,
सिमट कर रह गयी है, और
आखें इतनी नींद में रहती है आजकल कि
इन्हें ख्वाबों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता !!

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