आज सुबह आसमान का रंग सुर्ख लाल था
जैसे तुम्हारे हाथों से
होली के कुछ रंग छलक गए हों
सारा दिन कमबख्त जिंदगी की धूप ने
इस रंग को उड़ाना चाहा
ये हल्का तो हुआ
पर कभी पूरी तरह मिट न सका
और रात को अँधेरे कि चादर ओढकर दिन सो गया
तुम्हारे रंगों को सीने में छुपाये
जो एक नयी सुबह फिर इसके साथ जी उठेंगे...
जैसे तुम्हारे हाथों से
होली के कुछ रंग छलक गए हों
सारा दिन कमबख्त जिंदगी की धूप ने
इस रंग को उड़ाना चाहा
ये हल्का तो हुआ
पर कभी पूरी तरह मिट न सका
और रात को अँधेरे कि चादर ओढकर दिन सो गया
तुम्हारे रंगों को सीने में छुपाये
जो एक नयी सुबह फिर इसके साथ जी उठेंगे...
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