आज बंद करके आँखें,
जो आकाश को देखा
तो कितने ही आज़ाद पंछी दिखे
उड़ते हुए एक ऐसी उड़ान,
जिसका न कोई अंत था और न कोई शुरुआत,
न कोई क़दमों के निशाँ थे आसमान पर,
जिनपर उनको चलना पड़ता
न थी उम्मीद की बेडियाँ,
जो बांधती हो उनको लोगों के सपनों से
जो आकाश को देखा
तो कितने ही आज़ाद पंछी दिखे
उड़ते हुए एक ऐसी उड़ान,
जिसका न कोई अंत था और न कोई शुरुआत,
न कोई क़दमों के निशाँ थे आसमान पर,
जिनपर उनको चलना पड़ता
न थी उम्मीद की बेडियाँ,
जो बांधती हो उनको लोगों के सपनों से
बस आज़ादी थी और,
उनकी अपनी उड़ान
जो कहीं से मुझे कुछ इशारा सा करती थी
उनकी अपनी उड़ान
जो कहीं से मुझे कुछ इशारा सा करती थी
पर जब आँख खुली,
तो शाम ढल चुकी थी
और आसमान खाली था
मैं वहीँ ज़मीन पर,
अपने परों से अनजान
भीड़ में खोता जा रहा था ...
तो शाम ढल चुकी थी
और आसमान खाली था
मैं वहीँ ज़मीन पर,
अपने परों से अनजान
भीड़ में खोता जा रहा था ...