वक़्त के इशारे पे,
नदी के इस किनारे से,
रुख़सत तो पड़ रहा है तुम्हे करना
बस इतनी सी गुज़ारिश है मेरे दोस्त
इस तरफ़ मुड़ कर न देखना
जाते हुए क़दमों की आहट को मैं सुन लूँगा
चुप चाप शायद रो भी लूँ,
पर कुछ न कहूँगा
पर अपनी आंखों में आए तूफ़ान से,
मेरे सब्र के बाँध की ताक़त को न परखना
बस इसीलिए गुज़ारिश है मेरे दोस्त
अब कभी मुड़ कर न देखना