Feb 2, 2011

तब मंदिर बने

एक दिन यूँ ही भावनाओं में बहकर मैं

उसको वहां से अपने साथ ले आया

सोचा था बस जाएगा वो भी साथ हमारे

जैसे कितने ही रिवाजों ने है घर बनाया

पर देखकर इस दुनिया की दुनियादारी

वो कुछ इस तरह से तिलमिलाया

की मैं भगवान् को मंदिर में छोड़ आया


पहले पहल तो हर किसी ने उसे अपनाया

उसकी बातें सुनकर तारीफों का पुल भी बनाया

पर जब चलने की बात की उसने दिखाई राह पर

सबने उसे भटका हुआ राही बुलाया

बस इसीलिए मैंने एक मंदिर बनाया


सब जानते थे की उसकी पहचान क्या है

सब जानते थे की उसका पैगाम सच्चा है

पर भीड़ के सामने कोई आवाज़ न उठा पाया

इसीलिए मैं भगवान् को मंदिर में छोड़ आया

3 comments:

  1. That is great Abhijit, now I understand why idols in some of our Jain temples are kept safe behind locked bars. If gods came out of these temples, life may not be that easier :-)

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  2. it's not easy for us to understand what we are not and even if we encounter divinity we may call it pretence...

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  3. अच्छा लगा भाई आपके ब्लॉग पे आके...अब आना जाना बना रहेगा..

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