मैं जानता हूँ की ये सफ़र हमारा साथ कहीं छुड़ा देगा,
पर दिल क्यूँ चाहता है की तुम दो कदम साथ चलो?
मैं जानता हूँ सुबह का सूरज मुझे नींद से जगा देगा,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इन आँखों में रात करो?
मैं जानता हूँ की प्यासा ही रह जाऊंगा मैं शायद,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम मेरी बरसात बनो?
मैं जानता हूँ अंत नहीं कोई इस सिलसिले का,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इसकी शुरुआत करो...