जाने क्यूँ कहते हैं ये कि समय दिखता नहीं,
आज मैंने उसे इन दीवारों पर देखा है...
रिसते हुए पानी की बूंदों में,
खोखली होती कुछ बुनियादों में,
मिटते हुए कुछ निशानों में,
बदलती हुयी कुछ सल्तनतों में,
बिखरती हुयी कुछ तस्वीरों में,
और इनके सामने उम्मीद और खुशी ली हुयी कुछ और तस्वीरों में,
कौन कहता है कि समय दिखता नहीं,
इसके कदमों के निशाँ हर सीने की दीवार पर चस्पाँ हैं |
आज मैंने उसे इन दीवारों पर देखा है...
रिसते हुए पानी की बूंदों में,
खोखली होती कुछ बुनियादों में,
मिटते हुए कुछ निशानों में,
बदलती हुयी कुछ सल्तनतों में,
बिखरती हुयी कुछ तस्वीरों में,
और इनके सामने उम्मीद और खुशी ली हुयी कुछ और तस्वीरों में,
कौन कहता है कि समय दिखता नहीं,
इसके कदमों के निशाँ हर सीने की दीवार पर चस्पाँ हैं |