एक दिन यूँ ही भावनाओं में बहकर मैं
उसको वहां से अपने साथ ले आया
सोचा था बस जाएगा वो भी साथ हमारे
जैसे कितने ही रिवाजों ने है घर बनाया
पर देखकर इस दुनिया की दुनियादारी
वो कुछ इस तरह से तिलमिलाया
की मैं भगवान् को मंदिर में छोड़ आया
पहले पहल तो हर किसी ने उसे अपनाया
उसकी बातें सुनकर तारीफों का पुल भी बनाया
पर जब चलने की बात की उसने दिखाई राह पर
सबने उसे भटका हुआ राही बुलाया
बस इसीलिए मैंने एक मंदिर बनाया
सब जानते थे की उसकी पहचान क्या है
सब जानते थे की उसका पैगाम सच्चा है
पर भीड़ के सामने कोई आवाज़ न उठा पाया
इसीलिए मैं भगवान् को मंदिर में छोड़ आया