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कोई साथ न होकर भी मेरे साथ-साथ चलता है,
जैसे कोई सितारा मुसाफिर के संग सारी रात चलता है
ढूंढ नहीं पाता मैं उसे दिन के उजाले में कहीं
पर हर रात वो यहीं मेरे ख्वाबों में रहता है
दूरियों का यकीन करूँ भी मैं क्यूँकर,
जब बन कर वो मुस्कान सदा इन होंठों पर रहता है...